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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र

Adhyatm ka dhruv kendra devatma himalaya a hindi book Sriram Sharma Acharya

 

दिव्य चेतना का केन्द्र हिमालय का हृदय


पदार्थों और प्राणियों के परमाणुओं-जीवकोषों में मध्यवर्ती नाभिक “न्यूक्लियस” होते हैं। उन्हीं को शक्ति स्रोत कहा गया है और घिरे हुए परिकर को उसी उद्गम से सामर्थ्य मिलती है तथा अवयवों की सक्रियता बनी रहती है। यह घिरा हुआ परिकर गोल भी हो सकता है और चपटा अण्डाकार भी। यह संरचना और परिस्थितियों पर निर्भर है।
   
पृथ्वी का नाभिक उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिणी ध्रुव की परिधि में मध्य स्थान पर है। उसके दोनों सिरे अनेकानेक विचित्रताओं का परिचय देते हैं। उत्तरी ध्रुव लोक-लोकान्तरों से कास्मिक-ब्रह्माण्डीय किरणों को खींचता है। जितनी पृथ्वी को आवश्यकता है उतनी ही अवशोषित करती है और शेष को यह नाभिक दक्षिणी ध्रुव मार्ग से अन्तरिक्ष में निःसृत कर देता है। इन दोनों छिद्रों का आवरण मोटी हिम परत से घिरा रहता है। उन सिरों को सुदृढ़ रक्षाकवच एवं भण्डारण में प्रयुक्त होने वाली तिजोरी की उपमा दी जा सकती है। प्राणियों के शरीरों और पदार्थ परमाणुओं में भी यही व्यवस्था देखी जाती है। अपने सौरमण्डल का “नाभिक सूर्य है, अन्य ग्रह उसी की प्रेरणा से प्रेरित होकर अपनी-अपनी धुरियों और कक्षाओं में भ्रमण करते हैं।

नाभिक की सत्ता, महत्ता और स्थिति के बारे में इतना समझ लेने के उपरान्त प्रकृति से आगे बढ़कर चेतना क्षेत्र पर विचार करना चाहिए। उसका भी नाभिक होता है। ब्रह्माण्डीय चेतना का ध्रुव केन्द्र कहाँ हो सकता है, इसके सम्बन्ध में वैज्ञानिकों में से अधिकांश का प्रतिपादन ध्रुव तारे के सम्बन्ध में है। वह दूर तो है ही, स्थिर भी प्रतीत होता है। उसका स्थान ब्रह्माण्ड का मध्यवर्ती माना जाता रहा है। अभी भी उसमें संदेह भर किया जाता रहा है। किसी ने प्रत्यक्ष खण्डन करने का साहस नहीं किया।

पृथ्वी का, पदार्थ सम्पदा का, नाभिक जिस प्रकार ध्रुव केन्द्र है। उसी प्रकार चेतना प्रवाह का मध्यबिन्दु नाभिक-हिमालय के उस विशेष क्षेत्र को माना गया है, जिसे हिमालय का हृदय कहते हैं। भौगोलिक दृष्टि से उसे उत्तराखण्ड से लेकर कैलाश पर्वत तक बिखरा हुआ माना जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि देवताओं, यक्ष-गन्धर्वो, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है।

इतिहास-पुराणों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र को देव भूमि कहा और स्वर्गवत् माना जाता रहा है। सामान्य वन, पर्वतों, भूखण्डों की तुलना में इस क्षेत्र की चेतनात्मक महत्ता विशेष रूप से आँकी गई है। उच्चस्तरीय चेतनशक्तियाँ इस क्षेत्र में बहुलतापूर्वक पायी जाती हैं। आध्यात्मिक शोधों-साधनाओं के लिए, सूक्ष्म शरीरों को विशिष्ट स्थिति में बनाये रखने के लिए वह विशेष रूप से उपयुक्त है। उस क्षेत्र में सूक्ष्म शरीर इस स्थिति में बने रह सकते हैं, जो यथा अवसर आवश्यकतानुसार अपने को स्थूल शरीर में भी परिणत कर सकें और उस स्तर के लोगों के साथ विचार विनिमय कर सकें तथा एक दूसरे को सहयोग देकर किसी बड़ी योजना को कार्यान्वित भी कर सकें।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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